Friday, June 19, 2020

काशी में यातना पीड़ितों का हुआ सम्मान समारोह

http://www.mediavigil.com/news/event/pvchr-banaras-presented-its-work-and-honored-torture-victims/

काशी में यातना पीड़ितों का हुआ सम्मान समारोह


 
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18, सितम्बर को जनमित्र न्यास (JMN), मानवाधिकार जननिगरानी समिति (PVCHR) व सावित्री बा फूले महिला पंचायत के संयुक्त तत्वाधान में सोशल ऑडिट के माध्यम से संस्था ने अपना लेखा जोखा किया सार्वजनिक किया इसके साथ ही “संघर्षरत यातना पीड़ितों” को उनकी व्यथा-कथा और वाराणसी की पहचान गमछा देकर सम्मानित किया गया.
कार्यक्रम की शुरुआत संस्था की मैनेजिंग ट्रस्टी श्रुति नागवंशी ने संस्था में चल रहे विभिन्न कार्यक्रमों के बारे में बताते हुए कहा कि संस्था क्राई के सहयोग से वाराणसी जिले के 4 ब्लाक के 48 गाँव और 1 शहरीय क्षेत्र के 2 स्लम में 2600 परिवार के 6120 बच्चो के स्वास्थ्य व पोषण के साथ साथ किशोरियों व गर्भवती महिलाओ के साथ उनके स्वास्थ्य, पोषण पर कार्य कर रही है साथ ही साथ उनके मौलिक अधिकारों को दिलाने हेतु शासन प्रशासन से पैरवी भी कर रही है. इसके साथ ही किचेन गार्डेन माडल के तहत 452 मुसहर परिवारों को सब्जियों के बीज देकर उन्हें सब्जी उगाने की कला विकसित करते हुए उनके पोषण को सुनिश्चित करने के साथ ही साथ आय का जरिया बनाने की भी प्रक्रिया चलाई जा रही है जिससे कि वो आत्मनिर्भर होने के साथ ही साथ पोषणयुक्त भोजन भी प्राप्त कर सके.
संस्था यू एन ट्रस्ट के सहयोग से मानवाधिकार हनन के मुद्दों की पैरवी व यातना पीडितो का स्व व्यथा कथा के माध्यम से उनके मानसिक सम्बल प्रदान कर उन्हें समाज के मुख्य धारा से जोड़ने के उद्देश्य से लोगो के बीच उनका सम्मानित कर उन्हें गरिमामय जीवन जीने के लिए प्रेरित किया जाता है.  इसमें घरेलू महिला हिंसा, पुलिस यातना, दंगे से पीड़ित, दबंगों द्वारा प्रताड़ित पीड़ितों के पक्ष में पैरवी कर उन्हें न्याय दिलाने का प्रयास किया जाता है.
संस्था टाटा ट्रस्ट्स के सहयोग से वाराणसी के बजरडीहा और लोहता क्षेत्र के 20 मदरसों में 5300 बच्चो के बीच में गतिविधि आधारित गुणवत्तापूर्ण तालीम को सुनिश्चित करते हुए मदरसों के परंपरागत शैक्षणिक प्रक्रिया से हटकर उन्हें तकनीकी के माध्यम से शैक्षणिक प्रकिया संचालित की जा रही है.
इसके साथ ही राजदुलारी फाउंडेशन की पारुल शर्मा के सहयोग से वंचित समुदाय की बच्चियों की पढ़ाई जारी रखने के लिए वर्तमान सत्र में 100 बच्चियों को छात्रवृति प्रदान किया जा रहा है.
वित्तीय वर्ष 2017-18 का अनयुटीलाईज फंड नेशनल में रुपये 1800831/- तथा FCRA में रुपये 2608718/- शेष था. वित्तीय वर्ष 2018-19 में संस्था में नेशनल फंड से रूपये 4768011/- प्राप्त हुआ जिसमे से रुपये 547582/- खर्च हुआ. इसके साथ ही FCRA के तहत रुपये 7260058/- प्राप्त हुआ और रुपये 7274911/-खर्च हुआ.
इसके साथ ही वाराणसी के बघवानाला स्लम बस्ती में पारुल शर्मा की मदद से रुपये 167150/- से समर सबल बोरिंग करवाकर बस्ती में पानी की व्यवस्था की गयी. 100 परिवारों के लिए पीने के पानी और दैनिक दिनचर्या के लिए किया गया है.
इसके बाद संस्था के संयोजक डा.लेनिन रघुवंशी ने यातना पीडितो के “सम्मान समारोह” के दौरान बताया कि आज समाज में जिसके साथ भी अन्याय होता है वह एकदम हाशिये पर चला जाता है और उसे अपने घर, परिवार और समाज का भी समर्थन न मिलकर उसे दबाने का प्रयास किया जाता है वो भी जब उत्पीड़क पुलिस या राज्य हो. ऐसे में हम ऐसे बहादुर पीड़ितों का सम्मान कर यह सन्देश समाज में देना चाहते है कि लड़ाई अगर संवैधानिक तरीके से लगातार लड़ी जाय तो न्याय अवश्य मिलता है.जिसका उदाहरण आज यहाँ इस कार्यक्रम में उपस्थित ये पीड़ित है.जिन्होंने अनेको चुनौतियों के बावजूद भी हिम्मत नहीं हारी और लगातार कानूनी प्रक्रिया के तहत संघर्ष कर अपने आप में एक उदहारण प्रस्तुत किया है.
पुलिस यातना के पीडितो को मनो – सामाजिक सम्बल प्रदान करने के लिए उनकी स्व-व्यथा कथा को पढ़ा गया और उनके संघर्षो के लिए उनका हौसला अफजाई के लिए उन्हें सम्मानित किया गया.
सम्मानित होने के उपरांत वाराणसी और सोनभद्र से आये पीड़ित चिंतामणि सेठ,गोपाल सोनकर, गोपाल यादव, हौशिला प्रसाद,केवला देवी,किरन मिश्रा, मकबूल, मनोरमा देवी, प्रेमनाथ सोनकर, राजेश्वरी देवी, सेचईराम यादव, शिवम मिश्रा, सिताबी देवी, संतरा देवी, बिंदु पटेल, प्रीति देवी, अब्दुल मन्नान, कमरजहाँ, रितेश यादव, मीना, कमालुद्दीन, पूनम, गुलपत्ती, पियरी, रामबली, ज्ञान प्रकाश,लल्लू, फूलमती, गुलाब, बुधनी, संत कुमार, कविता, सहोदरी, गुलपतिया, शिव कुमार, ददनी, सुकुवारी, ने भी अपने ऊपर हुए अन्याय को लोगो के समक्ष साझा करते हुए बताया कि इस पीड़ा से निकालने के लिए हमें पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर कितना संघर्ष करना पड़ा. लेकिन न्याय मिलने के बाद एक आत्म संतुष्टि और आत्म विश्वाश जो हमें प्राप्त हुआ उसने पिछले किये गए संघर्षो को एक सुखद क्षण में परिवर्तित कर दिया. आज इस कार्यक्रम के द्वारा जो हमें सम्मान प्राप्त हुआ है वो हमारे इरादों को और मजबूती प्रदान करेगा जिससे आगे हमें संघर्ष करने की हिम्मत देता रहेगा. साथ ही हम अन्य पीडितो के संघर्षो की लड़ाई में अपना सहयोग देते रहेंगे. इस कार्यक्रम में सिद्दीक हसन (सदस्य सचिव), गवर्निंग बोर्ड सदस्य रागिब अली, डा.इफ़्तेख़ार अहमद, इदरीश अंसारी उपस्थित रहे.
इस कार्यक्रम में वाराणसी, और सोनभद्र से पीडितो के आलावा अन्य नागर समाज के सैकड़ो लोग के साथ ही साथ संस्था ट्रस्टी, गवर्निंग बोर्ड सदस्य, मैनेजमेंट सदस्य के साथ ही साथ सभी संस्था के सभी कार्यकर्ता बन्धु उपस्थित रहे.

PVCHR द्वारा जारी 

दो महीने बाद कासगंज: दंगे की आग ने बुझा दिए जिनके घरों के चूल्हे, उनकी दास्तान बाकी है…

दो महीने बाद कासगंज: दंगे की आग ने बुझा दिए जिनके घरों के चूल्हे, उनकी दास्तान बाकी है…

 
आज 26 मार्च है। ठीक दो महीने पहले उत्‍तर प्रदेश का कासगंज दंगों की आग में झुलसना शुरू हुआ था। शुरुआत में यह देखने में छोटी-मोटी झड़प लग रही थी लेकिन जब एक नौजवान की जिंदगी दंगे की भेंट चढ़ गई, तो सारे कैमरे राजधानी से कासगंज की ओर मुड़ गए। दंगे के क्रम में जिस तरह यहां का स्‍थानीय समुदाय बंटा, वैसे ही मीडिया भी आपस में बंट गया। एक मीडिया वो था जिसे हिंदू पसंद कर रहे थे1 दूसरा मीडिया वो था जिसे मु‍सलमान सही मान रहे थे। इस विभाजनकारी परिदृश्‍य में सबसे पहले मीडियाविजिल ने कासगंज से रिपोर्ट की कि कैसे चेतावनियों के बावजूद दंगे को भड़कने दिया गया। किसी ने नहीं बताया कि वहां पीवीसीएचआर नाम के मानवाधिकार संगठन के लोग जो दंगा रोकने की कोशिश में लगे थे, वे भी दंगाई होने के नाम पर पुलिस द्वारा उठा लिए गए।

शुरुआती हफ्ते में जब दंगा भड़का, तो मीडिया ने इसे काफी तवज्‍जो दी लेकिन बाद में किसी ने फॉलो अप नहीं किया कि पकड़े गए लड़के आखिर छूटे कि नहीं। ऐसा लगा कि पीडि़त परिवार को मुआवजा दिलाने तक ही मीडिया की भूमिका पहले से तय थी। मृतक के अलावा जो सवा सौ लड़के हिरासत में थे, उन्‍हें किसी ने नहीं पूछा।

दिल्‍ली से एकाध फैक्‍ट फाइंडिंग टीमें वहां गईं, तो सच का कुछ और आयाम सामने आ सका। इस बीच गिरफ्तारियां बदस्‍तूर जारी रहीं और जिन परिवारों ने डर के मारे अपना घर छोड़ा था, वे लौट कर नहीं आ सके। आज दो महीने बाद वहां का पुरसाहाल पूछने वाला कोई नहीं है जबकि हालात बद से बदतर हो चुके हैं।
ऐसे में कासगंज के पीडि़तों की जिंदगी का जायजा लेने के लिए मीडियाविजिल और पीवीसीएचआर (मानवाधिकार जन निगरानी समिति) ने 21 मार्च को दिल्‍ली में एक कार्यक्रम आयोजित किया, जिसमें कासगंज से करीब तीन दर्जन लोगों को लाकर उनकी गवाही ली गई। दिल्‍ली के प्रेस क्‍लब ऑफ इंडिया में जहां यह आयोजन हुआ, तीन घंटे में बयां पीडि़तों का दर्द दिल दहला देने वाला था। एक महिला अपनी दास्‍तान सुनाते-सुनाते बेहोश हो गईं। कुछ लोग रोने लगे और बाकी के चेहरों पर सन्‍नाटा था। गुस्‍सा भी था।
इनमें हिंदू भी थे और मुस्लिम भी। ये सभी दंगे के सताये हुए थे। ये दोनों समुदाय एक-दूसरे  की हिफ़ाज़त में जुटे थे और इतना ज़हर उगला गया, बावजूद इसके इनकी एकता नही टूटी।

कासगंज दंगे की दूसरी बरसी पर मीडियाविजिल अपने पाठकों के लिए पीवीसीएचआर की मदद से वहां के पीडि़तों की लिखित गवाहियां लेकर आया है। इनमें कुछ गवाहियां 21 मार्च के आयोजन में भी हुई थीं। इन गवाहियों से आप समझ पाएंगे कि एक छोटे से दंगे का असर कितना लंबा बना रहता है और कितने आशियाने इसकी आग में झुलस कर मर-खप जाते हैं।

कासगंज के पीड़ितों की व्यथा कथा


चालीस पुलिस वाले रात के 1 बजे घर से उठा ले गए और हमें थाने में बहुत पीटा
इलियास अहमद, उम्र 62 वर्ष
पुत्र स्वर्गीय अब्दुल गफूर
मोहल्ला मोहन गली, दयाल पोस्ट, कासगंज 


29 जनवरी की रात 1:00 बजे अचानक मेरा दरवाजा पुलिस वाले जोर-जोर से पीटने लगे, नेताजी-नेताजी की आवाज़ लगाई, इतने में मेरी पत्नी बोली कि कोई आया है… जब मैं देखा तो वर्दी में पुलिसवाले गेट पर खड़े थे… मैं डरते-डरते गेट खोला और खोलते ही सभी पुलिस वाले घर के अंदर घुस गए. दो पुलिसवाले हमारे दोनों हाथ को पकड़ लिए और बोले कि थाने पर चलना है वहां पर आईजी साहब कुछ पूछताछ करेंगे. मेरी पत्नी यह सुन कर रोने लगी कि क्या बात है. चौकी इंचार्ज इंदू वर्मा ने मेरी पत्नी को कहा कुछ नहीं होगा, आप यहीं रहिए इन्हें कुछ देर बाद हम पहुंचा देंगे. जब मैं बाहर निकला तो देखा कि 30 से 40 पुलिसवाले बाहर थे! हमें दो पुलिसवाले गाड़ी में बैठाकर कोतवाली कासगंज ले गए. जब थाने पर गए तो हमें वहां ले जाकर लाकर में डाल दिए. दूसरे दिन पुलिसवाले आए, बोले हाजी साहब कासगंज महिला थाने में बुलाए हैं. कुछ देर बाद गाड़ी में लेकर कोतवाली गाड़ी से महिला थाना आए दो पुलिस वाले हमें गाड़ी में से हाथ पकड़कर SP साहब और बड़े अधिकारी थे एक पुलिस वाले हाथ पकड़कर दोनों लाठी से कुछ लोगों को मार रहे थे. जब हमें  मार रहे थे तो बोले साहब हमारा क्या कसूर है. बोले गुंडे पाल कर रखे हो… तुम गुंडा हो. हम बोले साहब हम लोग कुछ नहीं जानते हैं लेकिन 10 से 15 लाठी मारे इसके बाद गाड़ी में धक्का देकर बैठा दिए… उसके बाद अमरपुर थाने ले जाकर लॉकअप में बंद कर दिए. अम्मापुर थाने की पुलिस बोल रही थी कि तुम लोग को ऐसा केस लगाएंगे जीवन भर बर्बाद हो जाओगे. दो दिन तक अमरपुर थाने में रहे उसके बाद 31 जनवरी 2018 को हमको छोड़ा गया. हम चाहते हैं कि कासगंज कोतवाली चौकी इंचार्ज इंदू वर्मा व विक्रांत सिंह के ऊपर कानूनी कार्रवाई की जाए और हम गरीब को न्याय दिलाने की कृपा करें.

निर्दोष पति से जेल मिलने गई तो लोग आतंकवादी की बीवी बोल रहे थे
बदरुन्निसा, उम्र 33 वर्ष
पति मोहम्मद सफीक़
पता मोहन सरदार पटेल गली, क़स्बा कासगंज, थाना जिला कासगंज
मेरे पति रिक्शा चला कर घर परिवार चलाते थे. मेरे पति घर पर ही थे, उन्हें कुछ भी नहीं पता कि शहर में क्या हो रहा था. एक दिन अचानक पुलिस वाले मेरे घर दोपहर के समय आ गए. उस समय मेरे पति खाने जा रहे थे. उन्होंने मेरे पति को यह कहते हुए गाड़ी में बैठा लिया कि इसे पूछताछ कर के छोड़ देंगे, पर हमें पता था कुछ दिन पहले मेरे बगल के एक आदमी को उठा कर ले गया था और नहीं छोड़ा था. मेरे पति को भी उसी तरह ले गए और इस तरह चार से पांच दिन गुजर गए. इधर मकान मालिक कमरे का किराया मांगने लगा और घर में अनाज भी नहीं था. पड़ोस के लड़के ने हमें कुछ दिन तक खाना ला कर दिया था और बाद में मोहल्ले वालों ने दाल चावल और अनाज ला कर हमें दिया. उनके जेल जाने से मेरी तबियत और भी ख़राब हो गई थी! मैं अपने पडोसी के साथ अपने शौहर से मिलने जब जेल गई तो उन पर मेरी नजर पड़ी कि उनकी आँख में आंसू भर आये. यह देख कर मैं भी रो पड़ी. उन्होंने बस यही कहा ही मुझे बस यहाँ से बाहर निकालो चाहे जो कर लो. मेरे पास 100 रूपये थे वो मैं उन्हें दे दी. जब हम जेल से मिल कर बाहर आ रहे थे तो वहां खड़े लोग तरह तरह की बातें बना रहे थे… कह रहे थे देखो आतंकवादी से मिलने आई थी. अगर पास पड़ोस वाले हमारी मदद नहीं करते तो मेरे भूखे मरने के दिन बहुत ही करीब थे! किसी तरह मेरे पति बाहर आ जाएँ बस ताकि फिर से घर के जो हालात हैं वह सुधर जाए! आखिर ये लड़ाई उन लड़कों की थी पर उनके लड़ाई से हमें क्या मतलब! इस लड़ाई ने तो हमारी जिदगी ही ख़राब कर दी है!

निर्दोष पति के जेल जाने पर हमारे भूखे मरने की नौबत आ गयी थी 
फ़रीन, उम्र 30 वर्ष
पति मोहम्मद जफ़र
पता मोहन सरदार पटेल गली, क़स्बा कासगंज, थाना जिला कासगंज 
मेरे परिवार में मेरे पति के साथ तीन बच्चे और एक ननद रहते हैं. मेरे पति ढोलक बजा कर घर परिवार चलाते थे. एक दिन अचानक पुलिसवाले मेरे घर दोपहर के समय आ गए और मेरे पति को यह कहते हुए गाडी में बैठा कर ले गए कि इसे पूछताछ कर छोड़ देंगे. मेरा दिल नहीं मान रहा था कि वो छोड़ेंगे! हम धीरे धीरे बैचेन होते जा रहे थे. चार से पांच दिन गुजर गए, घर मे खाने को दाने तक नहीं थे. हम अपने बच्चे को ले कर मायके चले गए जहाँ कुछ दिन बाद हम अखबार मे देखे कुछ लोगों के नाम छपे थे जिसमे मेरे पति का नाम भी था. मायके से आने के बाद दो दिन तक मैं खुद और बच्चों को भी भूखे रखी थी, तब बाद में मेंरे पडोसी को पता चला कि मेरे घर खाना नहीं बना है तो वह हमें कुछ दिन तक खाना दी…. उसके बाद मोहल्ले वालों ने दाल चावल और अनाज ला कर हमें दिया. जब मैं उनसे जेल में मिलने गई तो यह नहीं बता पाई कि कई दिनों तक घर का चूल्हा तक नहीं जला था. अगर पास पड़ोस वाले हमारी मदद नहीं करते तो मेरे भूखे मरने के दिन बहुत ही करीब थे! अल्लाह ने किसी तरह हमें बचा लिया है जो आज मैं जिन्दा हूँ.
लोग अब अलग नज़र से देखते हैं हमें 
हाशिम, उम्र 21 वर्ष
पुत्र अनीस अहमद
पता शाह बाला, पेच माल गोदाम रोड, जिला कासगंज 
मेरे घर में मेरे माता-पिता के साथ चार भाई हैं. मेरे पिता जी मजदूरी कर के जीविका चलाते हैं. मेरी घटना यह है कि 29 जनवरी 2018 को मैं अपने घर में सो रहा था और अचानक से जोर-जोर से मेरे दरवाजे को कोई पीट रहा था जिसका आवाज सुनकर मैं डर गया जिसके वजह से मैं दरवाजा नहीं खोल रहा था लेकिन वह लोग बार-बार दरवाजा पीट रहे थे, तो मेरे भाई ने दरवाजा खोला तो देखा कि सामने पुलिस वाले आए हैं… वे बोले कि हाशिम कहां है? तो मेरे भाई भी बहुत डर गए कि क्या हो गया? और उन पुलिस वालों से पूछे की क्या बात है? मेरे भाई हाशिम ने क्या किया है? लेकिन वह बस यह बोल रहे हैं कि पहले हाशिम को बुलाओ. जब वह तेज से चिल्लाने लगे तो मैं छत पर था फिर उनकी आवाज सुन कर नीचे आया उसके बाद पुलिस वाले बोले कि तुम्हें IG साहब बुला रहे हैं, तुमसे कुछ बात करना है. यह सुनकर मुझे बहुत भय हो गया कि आखिर यह लोग मुझसे क्या बात करेंगे लेकिन फिर भी वह मुझसे जबरदस्ती कॉलर पकड़कर IG के सामने ले गए और उन्होंने सबसे पहले पहले पूछा कि मोबाइल चलाते हो? तो मैंने बोला हां. तो उन लोगों ने मेरा मोबाइल छीन लिया और मेरा कालर पकड़कर ले जाने लगे. मैं उनके सामने बहुत गिड़गिड़ा रहा था कि सर मैंने कुछ नहीं किया मुझे छोड़ दीजिए, पर उन्होंने मेरी एक भी बात नहीं सुनी और मुझे थाने में बंद कर दिया. मेरी परीक्षा का भी समय आ गया था, मैं परीक्षा की उम्मीद को बिलकुल छोड़ चुका था क्योंकि मैंने कुछ भी तैयारी नहीं की थी. 29 जनवरी को पुलिस वाले मुझे ले गए थे और 6 मार्च को मेरी परीक्षा थी. मुझे 31 जनवरी 2018 को शाम को छोड़ दिया गया. अब जिधर भी जाता हूँ लोग अलग नजर से हमें देखते हैं जिससे अजीब लगता है.

पुलिसवाले मेरा सब कुछ लूट ले गए
हाजी आरिफ उर्फ पूजा किन्नर, उम्र 52 वर्ष
पुत्र विल्किंस
चंपा मोहल्ला, मोहन गंदा नाला, पुलिया नंबर 2, थाना कासगंज जिला कासगंज 
मैं किन्नर समाज का 2 जिले का अध्यक्ष हूं- एटा और कासगंज. मैं गाना बजाना कर अपना जीवनयापन करता हूं. 29 जनवरी रात 12:30 बजे मैं अपने घर पर सो रहा था उसी समय अचानक दरवाजा पीटने की आवाज आई. मैं अपने 3-4 साथियों को जगाया फिर गेट खोला, इतने में 8 -10 पुलिसवाले मेरे रूम में घुस गए, मैं कुछ समझ पाता तभी 4 पुलिसवाले जोर जबरदस्ती करने लगे. इतने में मेरा किन्नर साथी हमारे तरफ आया और तेज आवाज में बोले, तभी पुलिस वाले हमें उठाकर पटक दिए, लात घूंसों से मारे भी और बोले गुंडे पालते हो… हमारे साथ ऐसा हुआ कि मैं कहने में भी शर्म आ रही है. मेरे घर में रखा सामान पूरा तोड़फोड़ कर दिए… खाली बर्तन, 4  सोने की अंगूठी, एक सोने का चैन, घुंघरू वाला पायल जो हम पैर में डालते हैं, 250 सौ ग्राम पैजनि, 3-4 तोले सोने के जेवर सब पुलिस ने ले लिया. इंदु वर्मा ने अपना रिवाल्वर मेरे कनपटी पर लगाया था. उस समय लग रहा था कि कहीं हार्ट अटैक ना हो जाए. हमें गाड़ी में बैठाकर कासगंज कोतवाली ले गए. वहां SP, CO, दरोगा, चौकी इंचार्ज और कई थानों की पुलिस थी. हमें धक्का देकर सलाखों में बंद कर दिए. उस समय लग रहा था कि हमारे 1000- 2000 किन्नरों का क्या होगा? हम कैसे मुंह दिखाएंगे? दूसरे दिन 200-300  किन्नर थाने पहुंचे लेकिन हमको किसी से मिलने नहीं दिया. उन्होंने कहा जब तक डीआईजी साहब मिल नहीं लेंगे तब तक कोई मिल नहीं सकता. दूसरे दिन महिला थाना कासगंज के लिए गाड़ी में बैठाकर ले जाया गया. SP साहब बोले गुंडा बदमाश कहां छुपे हो… 10-12 लाठी मारी… फिर हमें अमरपुर थाना जो कासगंज से 15 किमी दूर है वहां 2  दिन तक रखा गया. दो दिन बाद मैं घर आया तो देखा मेरा सब लूट ले …गए मेरा सब कुछ खत्म हो गया… उसी दिन से आज तक मुझे ना तो रात में नींद आती है ना ही दिन में…  बस वही पुलिस ही दिखती है सोते समय…

पुलिस ने जबरन मेरे बीमार बेटे को जेल भेज दिया
नसीम बानो, उम्र 57 वर्ष
पति चमन
मुहल्ल्ला बड्डू नगर गली, नंबर 3, कासगंज
मेरे परिवार मे मेरे छह लड़के और तीन लड़की के साथ मैं रहती हूं. मेरे शौहर के इंतकाल के बाद बच्चों को पढाई न करा सकी जिस कारण बच्चे जैसे तैसे कमाने लग गए. मेरा बड़ा बेटा शादी कर के बहू के साथ अलग रहता है. मेरा तीसरा बेटा सलमान जो अपने अब्बू की पुरानी बस में टिकट काटता था और जो भी कमाई करता उससे मेरे घर का खर्चा पानी चलता था!
26 जनवरी के दिन सलमान की तबियत बहुत खराब थी. वह घर में सो रहा था. 25 जनवरी को ही बस का इंजन आगरा से बनवा कर लाया था गाड़ी मे लगाने के लिये लेकिन गाडी पर ही रख दिया था. अगले दिन उसे गाडी में लगाना था पर तबियत ख़राब हो जाने की वजह से वह गाडी मे नहीं लगा पाया था. तभी 12 बजे तक पूरे शहर मे यह हल्ला होने लगा कि हिन्दू मुस्लिम में झगडा हो गया है! यह सुन कर हमलोग घर का दरवाजा बंद कर के अपने घर के अंदर सब लोग दुबक गए थे! पुलिस मेरे घर के अन्दर आ गई और सीधे छत पर चली गई जहां किसी को न देख कर फिर वापस आ गए. अचानक घर में पुलिस आने से सभी लोग पूरी तरह डर गए थे. मेरा छोटा बेटा रोने लगा था. कुछ देर बाद पुलिस चली गई, तब कुछ देर बाद जा कर पता चला कि मेरी बस के शीशे तोड़ दिये गए और टायर की हवा निकाल दी गई. बस की इंजन खुली थी, वे उसे उठा कर ले गए और बैटरी भी खोल ले गए. घटना के चार दिन ही गुजरे थे की तभी पुलिस एक दिन अचानक मेरे घर आई. उस समय घर में मैं और बच्चे सब थे. मेरा बड़ा बेटा घर पर नहीं था! पुलिस ने बोला सलमान को ले जाना है पूछताछ के लिये. हमने कहा कि साहब मेरे बच्चे की तबितय ठीक नहीं है! उसे मलेरिया टाईफाईड हुआ है, वह बहुत गम्भीर बीमार है पर पुलिस ने एक भी नहीं सुनी. वो लगातार सलमान को ले जाने के लिये दबाव बना रहे थे. तब मेरे बड़े बेटे ने सीओ को बुला कर उसी हालत में सलमान को पुलिस को सौंप दिया। मैं बेटे से जेल  मे मिलने गई थी जहां उसके लिये सुरे आइना की किताबें ले गई. उसे दे दी और बोली बेटा खुदा को याद कर और सोचना की उमराह पे हो! जो होना था हो गया, अब इंसाफ अल्लाह ताला के हाथ में है!

बिटिया की शादी पर पानी फिर गया और बेटा जेल गया
नौशाद कुरैशी, उम्र 45 वर्ष
पिता अब्दुल मजीद
मोहल्ला चौक कस्साबाग़ नबाब, थाना जिला कासगंज
मै मजदूर हूं, मेरे परिवार मे मेरे तीन बेटे और तीन बेटियों के साथ मेरी पत्नी रहती है। मेरा बड़ा बेटा आसिफ का एक जीमखाने की एक दुकान है जिसमे आसपपास व शहर के सभी जाति धर्म के बच्चे जीम करने सुबह शाम आया करते थे! इसी की कमाई से मेरे पूरे परिवार का भरण पोषण होता था! 27 को मेरे भाई के बेटी की शादी थी! उसी की तैयारी मे हमलोग लगे हुए थे. मेरे भाई साहब ने बड़े धूमधाम से शादी करने की सोच रखी थी पर उनके सब के किए कराये पर पानी फिर गया. हम लोगों ने बहुत फीके से बेटी विदा कर दी! अभी दो दिन ही हुआ था कि कुछ लोगों ने मेरे बेटे का नाम थाने में दे दिया जिसके बाद पुलिस मेरे घर पर उसकी तलाश में आने जाने लगी! जब पुलिस घर में आती तो बहुत भद्दी भद्दी गाली देती थी और कहती थी अपने बेटे आसिफ को थाने में हाज़िर कर दो. बाद में हमने अपने बेटे को कोर्ट मे ले जा कर हाज़िर किया जहां से उसे जेल भेज दिया गया! बेटे के जेल जाने से घर की माली हालत बहुत ख़राब हो गई थी. जीमखाने का किराया 4000 रुपया प्रति महीना देना पड़ रहा था लेकिन जिमखाना बंद होने की वजह से किराया भी नहीं दे पा रहे थे! उसका भी किराया लगातार बढ़ता जा रहा था! हम एक दिन अपने बेटे से मिलने जेल गए जहां पर बेटे की हालत देख कर हमें बहुत रोना आया.

आठवें दिन पता चला बेटा जेल में है
नूरजहां, उम्र 59 वर्ष
पति नन्हे
मोहल्ला बड्डू गली नंबर 2, कासगंज
मेरे परिवार में 5 बच्चे हैं- 2 लड़की और 3 लड़के. मेरा बड़ा बेटा शमशाद जिसकी उम्र 32 वर्ष है रिक्शा चला कर पूरे परिवार का खर्च चलाता था .मेरे घर में वह एकमात्र कमाऊ था जिससे पूरे घर का खर्च चलता था. 29 जनवरी की सुबह दूध वाला ने दूध देने के लिये घर पर नहीं आया था. काफी देर हो गई तो मेरा बेटा काफी देर इन्तजार करने के बाद दूध वाले के दुकान पर दूध लेने जा रहा था! हमने उसे मना भी किया था कि बेटा मत जाओ पर वो बोला अम्मी कुछ नहीं होगा और यह कह कर चला गया! जाने के बाद वह वापस नहीं आया. हमने उसके सभी साथी संगत से पूछा था शमशाद को कहीं देखो हो पर किसी ने उसकी खबर नहीं दी. सात दिन गुजर गए उसका कोई पता नहीं चल पाया. फिर हमको अचानक पता चला उसे पुलिस ने पकड़ कर जेल भेज दिया है. मोहल्ले में लोगो ने जिस तरह हल्ला मचा रखा था उससे हम डर गए थे कि कही मार कर फेंक तो नहीं दिया गया हो.

अब्बा को पुलिस ले गई जेल, खौफ खाई अम्मा का हो गया इन्तकाल
राहत हुसैन, उम्र 27 वर्ष
पिता मोहम्मद नसीरुद्दीन हुसैन
मोहल्ला बड्डू नगर गली नंबर 3, क़स्बा कासगंज
अब्बा दुकान चलाते थे. उन्हें दुनियादारी से कोई मतलब नहीं था. बस नमाज अदा करने मस्जिद जाया करते थे और घर गृहस्‍थी संभालते थे. 26 जनवरी को मेरी दुकान बंद रही और दूसरे दिन मेरे अब्बा ने रोज की तरह दुकान खोली। अचानक 31 जनवरी की रात भारी संख्या में पुलिस हमारे घर आई और दरवाजे पीटने लगी. उस रात पुलिस मेरे अब्बा और मेरे भाई को यह कह कर ले गई की पूछताछ कर के छोड़ देंगे! अम्मा की हालत दिनों दिन खराब होते जा रही थी. वह मनहूस दिन भी आ गया जब 8 फरवरी की रात के 8 बज रहे थे अम्मा की तबियत बहुत ही गंभीर हो गई और कुछ ही पाल में अम्मा का इंतकाल हो गया. हमें कुछ समझ में नहीं आ रहा था हम क्या करें. मोहल्ला के लोगों ने मिल कर अम्मा को दफ़न कर दिया. इस झगडे ने तो हमें अनाथ बना कर रख दिया. हम किसे क्या कहें समझ नहीं आता! जब से अब्बा जेल गए हैं चावल की दुकान तब से बंद पड़ी है. जब महल्ले में घूमते हैं तो सब बुरी नजर से देखते हैं और कहते हैं देखो इसके अब्बा और भाई जेल गए हैं. मेरे अब्बा ने क्या गुनाह किया था कि उन्हें जेल भेज दिया गया! मेरे इस सवाल का जबाब अब तक किसी ने हमें नहीं दिया है.

पुलिस के रात में दरवाजा पीटने से मेरी रूह कांप गई और हम बिना कारण गिरफ्तार कर लिए गए
राहुल यादव, उम्र 27 वर्ष
पुत्र राजू यादव
ग्राम शाह बाला, पेंच माल गोदाम रोड, जिला कासगंज
मेरे घर में मम्मी पापा वह तीन भाई एक बहन हैं. मैं मानवाधिकार  जन निगरानी समिति नामक संगठन में काम करता हूं. मेरी घटना यह है कि 29 जनवरी 2018 को जब रात 11:00 बजे मैं और मेरे दो भाई घर पर ही थे तभी अचानक पुलिस फोर्स मेरे घर पर आई और जोर जोर से दरवाजा पीटने लगी. मुझे तो बहुत डर लग रहा था कि न जाने कौन लोग हैं जो इतना जोर जोर से दरवाजा पीट रहे हैं मेरे तो डर के मारे हाथ और पैर बहुत तेजी से कांपने लगे. जब वे मेरे और मेरे पिताजी का नाम तेजी से बुलाने लगे तो मैं इसी तरह थोड़ी हिम्मत जुटाकर दरवाजा खोला तो देखा कि धड़ाधड़ पूरी पुलिस फोर्स 20 से 25 लोग थे मेरे घर में घुस गए. मैं तो पुलिस वालों को देखकर घबरा गया. फिर जब मैंने पुलिसवालों से पूछा कि क्या बात है तो उन्होंने गाली गलौज करते हुए बोले चल तुझे आईजी साहब ने बुलाया है. फिर मैंने पूछा कि क्यों बुलाया है तो कहने लगे कि तुम से कुछ पूछताछ करेंगे. जब मेरे भाई दोनों नीचे आए तो हम तीनों भाइयों को जबरदस्ती कलर पकड़ कर थाने ले गए. जब मैंने दोबारा पूछा कि साहब हमें क्यों बुलाए हैं? आखिर बात क्या है, तो वही जवाब दिए कि तुमको सुनाई नहीं देता बोले ना कि आईजी साहब बुला रहे हैं. कुछ समय बाद आईजी साहब भी मेरे घर आए और तभी मैंने आईजी साहब से भी बोला कि साहब हमने क्या किया है तो आईजी साहब ने कुछ नहीं बोला और मुझे घसीटते हुए घर से बाहर तक निकाल कर थाने ले कर चले गए. मैं और मेरे भाई 3 दिन तक जेल में रहे. हम तीनों भाइयों के साथ साथ मेरे पिताजी को भी हवालात में रखा गया. मेरे भाई निशांत यादव को पुलिसवालों ने पूछताछ के नाम पर बेल्ट से बहुत मार मारा. मेरे पिताजी को मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया और साथ ही साथ डराया धमकाया गया. मेरा भाई अतुल यादव इस घटना के कारण अपनी 12th क्लास का परीक्षा नहीं दे सका और हम मानसिक तनाव में चले गए!

मेरे पति को फर्जी केस में फंसाकर सलाखों के पीछे छोड़ दिया गया
शबनम बानो, उम्र 26 वर्ष
पति का नाम मोहसिन मलिक
पता मोहल्ला नवाब गली, बगिया सत्तार अली, कासगंज
मेरे पति ठेला लगाकर घर का खर्च चलाते थे. मेरे दो बच्चे हैं. अभी मुझे नवां महीना लगा है. घर की आर्थिक हालत ठीक नहीं है फिर भी हम अपने पति व बच्चों के साथ खुश रहते थे.  29 जनवरी को मेरे पति और मेरे देवर दोनों लोग मस्जिद में नमाज पढने गये थे. उस समय 26 जनवरी का माहौल तिरंगा को लेकर चल रहा था, उसी समय नमाज पढ़कर जैसे ही नामा मस्जिद के बाहर आ रहे थे इतने में कोतवाल साहब मेरे देवर से बोले कि मैं तुम्हारे भाई को कोतवाली लेकर जा रहा हूं अभी पूछताछ करके छोड़ दूंगा. मेरे देवर मस्जिद से घर चले आये और आकर बताने लगे कि भाई को कोतवाल साहब ले गये हैं. इतने सुनते ही मेरा कलेजा अन्दर ही अन्दर बैठने लगा. जब ज्यादा देर होने लगा तब मेरे देवर रात का खाना लेकर गये तो पुलिसवाले बोले कि तुम्हारे भाई को बंदूक और कारतूस का केस लगाकर जेल भेज दिया गया है. पुलिसवाले होशियारी से मेरे देवर को गुमराह करके आधार कार्ड मंगा लिये थे कि लाओ 151 में करके तुम्हारे भाई को छोड़ देंगे लेकिन पुलिसवालों ने बड़ी चालाकी से आधार कार्ड मंगवा कर 312 बोर की बंदूक व 8 कारतूस की बरामदगी दिखाकर अपराध संख्या 60/2018 धारा 147, 148, 149, 341, 336, 307, 302, 504, 506, 124ए आईपीसी व राष्ट्रीय ध्वज अधिनियम लगाकर जेल भेज दिया. अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुयी है. मैं दो बच्चों को लेकर कहां जाऊं. पुलिसवालों ने हम लोगों का जीवन ही बरबाद कर दिया. हम लोग गरीब जरूर थे लेकिन ये दिन तो नही देखना पड़ता था.

छोटे भाई पर जानलेवा हमले की FIR कराने गए मानवाधिकारकर्मी डॉ. लेनिन से पुलिस ने की मारपीट

http://www.mediavigil.com/just-in/attack-on-human-rights-defender-dr-lenin-by-up-police/

छोटे भाई पर जानलेवा हमले की FIR कराने गए मानवाधिकारकर्मी डॉ. लेनिन से पुलिस ने की मारपीट

 

मानव तस्करी विधेयक पारित कराने के लिए बंधुआ मज़दूरों की मुहिम

https://hindi.theprint.in/india/human-trafficking-survivors-bonded-labour-rajyasabha-loksabha/38379/

29 जुलाई 2018 को लोकसभा में मानव तस्करी (रोकथाम,पुनर्वास,संरक्षण) विधेयक 2018 पारित हो गया था. अब इस विधेयक को मौजूदा शीतकालीन सत्र मे राज्यसभा में पास कराए जाने की मांग को लेकर हस्ताक्षर अभियान चलाया जा रहा है.

 16 December, 2018 12:24 pm IST


प्रतीकात्मक तस्वीर : कॉमन्स
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‘एक दिन हम एक ईंट भट्टे पर गए. वहां का मालिक हमसे कहा कि एक दिन में 1000 ईंट बनाने का 400 रुपया देंगे. हम काम करने लगे. हम वहां सात महीना रहे. हमसे और हमारी बहन से सब काम कराया. ईंट निकलवायी, घास साफ कराई, खेती करायी लेकिन हमें पैसा नहीं दिया. खाली खुराकी के नाम पर एक हफ्ते का 400 रुपया दे देता था. एक दिन वहां के सुपरवाइजर पप्पू पंडित से हमारी किसी बात पर कहा सुनी हो गई तो वह और उसके 10-12 गुंडों ने हमारे ऊपर हमला कर दिया. हमारे साथ काम कर रही हमारी बहन जब हमें बचाने आई तो उसकी ब्लाउज़ साड़ी फाड़ दी.’ जौनपुर (उत्तर प्रदेश) के 32 साल के कैलाश मुसहर अपनी आप बीती सुनाते हुए भावुक हो जाते हैं.
लेकिन यह कहानी केवल कैलाश की नहीं है. उन जैसे कई बंधुआ मज़दूरों की है. इसलिए मानव तस्करी की मार झेल रहे देशभर के करीब 12 हज़ार लोग नेशनल कोएलिशन टू इरेडिकेट बांडेड लेबर एंड ह्यूमन ट्रैफिकिंग इन इंडिया संस्था द्वारा चलाए जा रहे हस्ताक्षर अभियान में भाग ले रहे हैं. इसमें उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल समेत देश के 14 राज्य के लोग शामिल हैं.
गर आंकड़ों की दुनिया में जाएं तो ड्रग्स और हथियारों के व्यापार के बाद मानव तस्करी दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा संगठित अपराध है. यूनाइटेड नेशन की एक संस्था इंटरनेशनल लेबर आर्गनाइजेशन (आईएलओ) के मुताबिक पूरी दुनिया में मानव तस्करी से जुड़ा व्यापार 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर से भी ज़्यादा का है.
अगर बात भारत की करें तो यहां मानव तस्करी बड़ी समस्या है. देश में यौन व्यापार, बंधुआ मज़दूरी, जबरन शादी आदि कामों के लिए मानव तस्करी तो होती ही है, लेकिन यहां अन्य देशों से भी लोगों को लाकर इस धंधे में शामिल किया जाता है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) 2016 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 15379 लोग मानव तस्करी का शिकार हुए हैं जिसमें अठारह साल से कम 60 प्रतिशत हैं. भारत में हर साल एक लाख से ज़्यादा लोग गुम होते हैं.
महिलाओं की स्थिति तो और भी बुरी है.
शकरा गांव जिला जौनपुर की 28 साल की किला मुसहर अपनी कहानी बताती हैं, ‘हमसे कहा गया 1000 ईंट पाथने पर 350 रुपये मालिक देंगे. लेकिन जब हम और हमारे पति वहां पहुंचे तब हमसे भट्ठा की सफाई करवाए, पुराना ईंट फेंकवाए, मड़ई लगवाए. खुराकी के लिए हफ्ते में 300 देते थे. एक सप्ताह तक खुले आसमान के नीचे बाल बच्चों सहित सोए. ठण्डा लगता था, 1-2 बार ओढ़ना खरीदने को बोला तो बोले चुप रहो. जब काम शुरू हो गया, एक दिन में पति पत्नी मिलकर दो से ढाई हज़ार ईंट पाथते. खुराकी हफ्ते में हम दोनों को कुल मिला कर 300 मिलता. ईंट पाथने के अलावा हमसे पानी का पाइप फैलवाते, बालू लदवाते. मैं कहती ये काम मेरा नहीं, मुंशी से करवाइए, तब मालिक मुझे गंदी-गंदी गालियां देता.’
केराकत (जौनपुर) के भट्ठा मालिक इन्द्रमणि सिंह व सुपरवाइज़र पप्पू पंडित की नज़र हमेशा औरतों पर रहती थी. पप्पू पंडित से मैं जब भी लकड़ी मांगने जाती तो कहता ‘लकड़ी लेबू, कुछ देबू ना.’ यह कहते हुए वह मुझे पकड़ने की कोशिश करता. मैं किसी तरह वहां से भागती. उस समय डर भी लगता और गुस्सा आता. वह हमेशा बुरी निगाह रखता था. आये दिन यही कहता है, ‘भट्ठा कमाने के लिए नहीं बल्कि औरतों के साथ खाने कमाने के लिए है.’ मैं बोलती क्या कह रहे हैं. मालिक ‘हट मर्दवा’ कहते हुए शरीर से रगड़ता हुआ चला जाता.’
समाज में हाशिए पर गए लोगों के लिए 20 साल से काम कर रही संस्था पीपुल्स सतर्कता समिति के संस्थापक सदस्यों में से एक लेनिन रघुवंशी कहते हैं कि हम बंधुआ मज़दूरी को खत्म करने के लिए जागरूकता तो फैला सकते हैं, लेकिन हमें इस समस्या का इलाज जड़ से करना होगा. बंधुआ मज़दूरों की लड़ाई एक ऐसी लड़ाई है जिसमें पुलिस, मजिस्ट्रेट, सामाजिक कार्यकर्ता की भागीदारी ज़रूरी है जो कि बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास के साथ-साथ इस प्रक्रिया में शामिल दोषियों को कड़ी से कड़ी सज़ा दिलाए. ऐसे में लोकसभा में पारित हो चुके मानव तस्करी विधेयक 2018 काफी अहम है.

मानव तस्करी (रोकथाम, संरक्षण और पुनर्वास) विधेयक, 2018

इस विधेयक में सरकार ने तस्करी के सभी पहलुओं को नए सिरे से परिभाषित किया है. नई परिभाषा के मुताबिक तस्करी के गंभीर रूपों में जबरन मजदूरी, भीख मांगना, समय से पहले जवान करने के लिए कोई इंजेक्शन या हॉर्मोन देना, विवाह अथवा विवाह के लिए छल, या विवाह के बाद महिलाओं और बच्चों की तस्करी शामिल है.
यह विधेयक अपने आप में महत्वपूर्ण इसलिए भी है क्योंकि पहली बार इसमें कुछ अहम बातों पर ध्यान दिया गया है. जिसमें तीन चीज़ें बहुत ही महत्वपूर्ण है. पहली बार किसी कानून में मानव तस्करी को रोकने की बात की गई है. दूसरा मानव तस्करी के अपराध को झेल रहे लोगों का पुनर्वास का इंतज़ाम कैसे किया जाए. तीसरा है कि दोषियों को सख्त से सख्त सज़ा कैसे दिलाई जाए. यह विधेयक सामाजिक और आर्थिक दोनों पक्षों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है.
क्या देश में पहले कोई ऐसा कानून नहीं था.
इस समस्या को लेकर इम्मॉरल ट्रैफिकिंग प्रिवेंशन एक्ट, 1956 नाम का एक कानून चला आ रहा था जिसे अनैतिक दुर्व्यापार कानून के नाम से जाना जाता था. जिसमें किसी से जबरन वेश्यावृत्ति कर रहे लोगों की केवल बात कही गई थी, लेकिन बच्चों की सुरक्षा को लेकर ज़्यादा नहीं था. इसमें कानून को कड़े रूप से लागू करने और पीड़ितों के पुनर्वास जैसी बातें नहीं थी.

दिक्कतें क्या हैं

ऐसा कहा जा रहा है कि सेक्सवर्कस और एलजीबीटी समुदाय के एक तबके को इस विधेयक से ऐतराज है. उनका सवाल है कि जब वह वापस अपने घर आएंगी तो उनको कौन स्वीकार करेगा.
इस पर दिल्ली के पूर्व डीजीपी और प्रयास संस्था के जनरल सेक्रेटरी अमोद कंठ कहते हैं, ‘यह केवल एक भ्रामक विचार है. जिसे बेवजह फैलाया जा रहा है. 18 साल से कम आयु के जिन लोगों को रेसक्यू कराया जाएगा उन्हें बालगृह भेजने का प्रावधान  है और उससे ऊपर आयु वाले स्वतंत्र हैं वह अगर शेल्टर होम में जाना चाहें तो जा सकते हैं और अगर उन्हें लगता है कि उन्होंने कोई गलती की है तो वह दोषी होंगे. उन्हें सज़ा मिलेगी. यह सब बातें केवल वही लोग कर रहें जो इसे व्यापार मानते हैं.’
आमोद कंठ आगे कहते हैं, ‘आसान भाषा में अगर कहें तो दो तरह के विचार हैं. एक विचार है कि यह एक संगठित अपराध है और इसे किसी भी कीमत पर रोका जाना चाहिए जबकि कुछ लोग कहते हैं कि इसे एक प्रोफेशन की तरह देखा जाना चाहिए. यह काम करने का उनका अधिकार है. मैं तो यही समझता हूं कि यह काम खतरनाक है और इसमें आप अपना केवल जिस्म नहीं बेचते हैं, बल्कि इसके साथ ही आप अपना हृदय और शख्सियत भी बेच देते हैं. अब फैसला आपको करना है कि आप क्या सोचते हैं.’