Friday, September 7, 2012

मुसहर होने का दर्द: स्व0 व्यथा-कथा


इस बडी शीर्षक मे हम मुसहर को इंगित कर  रहे हैए जो एक तरह से अपने समाज मे सर्वोपरी हैए जैसे .  जाने.जाने लालबुझक्कडण् और न जाने कोईए पाव मे चक्की बान्ध हिरण छलांग होई! कहावत सुने होंगेए उसी तरह ये भी अपने समाज के लालबुझक्कडण् हैए और इनका गुनाह ही लालबुझककडण् होना है !  इन्हे चहुओर के चालक व्यवस्थापक और सम्भ्रांत लोंग भारतीय आजादी के 60 वर्षो के बाद भी समाज मे समायोजन नही होने दियाए वंचितो मे वंचित है . क्योकि संगठित नही हैए पेट के लिए बच्चो के साथ और बच्चो से भी दूर अलग रहने पर विवश दृ मेहनतकश दुनिया पेट के आश्‍वासन पर जी रहे घुमंतू हैं।
जहा तक देखने और सुनने को मिलता है की फलाना जाति के लोग एक साथ यह किये दृ वह कियेए इन्हे तो पता ही नही की हम क्या करेए कही बीस घरए कही चार घर बसे है। शासन दृ प्रशासन और स्थानीय स्वाशासन भी खुश दृ चलो अपने मूल निवास से दूर हैए उनके बस्ती मे नही जाना पडेगा और योजनाओ में सबसे पहले लाभांवित होने वाले समुदाय को समानता की अहमियत नही समझ पायेंगा । हाण्ण् लेकिन जब पुलिस को किसी मामलो की भरपायी करनी होए या गूड वर्क दिखानी होए तब सबसे पहले रात मे ही अक्सर बस्ती मे जाते हैए जानते है क्यो घ्ण्ण् पहला . कोई उन्हे इस अछूत और मलिन बस्ती मे घूसते न देखेए दूसरा . बिना गुनाह के कई फर्जी मामलो मे फसाया जा सके ! अगली तथ्य यह है की रात मे उठाने से यह फायदा है की मानवीयता और भावनावो मे बहकर कही प्रत्यक्षदर्शियो का भीडण् खडी न हो जायेए और तब पुलिस का डर भी खत्म हो सकती हैण् डर है तो सभी प्रकार की चुप्पी का कारण और भय का माहौल हैए टूटे लोंग एक नही हो पाये और सामांती समाज सुढृढ रहे !

पुलिस को अदृश्य और अज्ञात मुखबीर भी मिलते हैए सर्वोच्च न्यायालय के गाईड लाईन्‍स का अक्षरतरू पालन भी होता है जैसा एफण् आईण् आरण् मे पढने को मिलता है। दुसरी तरफ सीण्आरण्पीण्सीण् 41 ;अद्ध दृ सन 2008 मे माननीय उच्च न्यायालय दृ उत्तरप्रदेश के फैसला मे यह निर्णय पारित हुआ की 7 वर्ष तक के सजा होने वाले धाराओ के अंतर्गत बिना ठोस आधार के किसी की गिरफ्तारी नही की जा सकतीए आखिर फिर क्यो भोनूए अक्करए राम्बल्ली उर्फ बल्ली और पप्पू मुसहर के साथ ही साथ हज़ारो मुसहर पुलिसिया उत्पीडन के लगातार शिकार हो रहे है और नयी दृ नयी मुकदमा लगाकर जेल भेंजे जा रहे है घ्मुसहर समुदाय संसाधन विहीन हैए जेलो और थानो मे कैद सफाई कर्मी और मेहतर का काम कर रहे हैए जेलो मे विचाराधीन कैदी है और सख्या बल ;पूरे भारत मे लगभग 3 लाख संसाधन विहीन कैदी हैद्ध से दबाब भी पड रहा हैए मीडिया के द्वारा यह प्रकाश मे भी आती हैए फिर सरकारे क्यो चुप है घ् सी0आर0पी0सी0 169 के तहत अंदेशा में ही कई बेगुनाह हिरासत में उत्‍पीडिण्त किये जाते है। उत्‍तर प्रदेश में जब बहुजन समाज पार्टी की सरकार थीए उन्‍होंने दलितों के लिए नारा दियाए ष्ष्जो जमीन सरकारी हैए वह जमीन हमारी हैष्ष् लेकिन वह उमंग तो पैदा की लोगों में लेकिन सरकार द्वारा आवंटित जमीन पर भी प्रशासन कब्‍जा नहीं करवा पा रही है।
इस संदर्भ में मानवाधिकार जननिगरानी समितिए वाराणसी ने माननीय राज्यपाल दृ उत्तरप्रदेश और महामहिम राष्ट्रपति जी दृ भारत को आवेदन भेजकर अवगत कराते हुए अपील किया है की विचाराधीन दलित कैदियो के मामलो मे त्वरीत हस्तक्षेप कर न्याय करे !

मुसहर समुदाय जंगलो मे रह रहे आदिवासी जनजाति की ही तरह अंग्रेजी हुकुमत को नकारते हुये गुलामी सहने से इंकाराए लेकिन पलायन होने पर विवश हुएए जहा गये वही बस गये तथा संसाधनो से पूरी विरक्त हो गयेए सोचते थे पूरी धरती माता तो अपनी हैए दिन बहुरे होंगे तब अपनी भी जिन्दगी अच्छी होंगी ! देश आज़ाद हुआए ये ठंगे गयेए शिक्षाए संचारए शासनए समाज व संसाधन से कटे जलए जंगलए जमीन से बेदखल हो जीवन से भी संघर्ष कर रहे है !

बिहार मे इस समुदाय को भूईया भी कहा जाता हैए जो मै बचपन से सुनता आया हुँए इनके जीवन शैली के बारे मे एक कहावत कही जाती है श्एक लबनी ; मिट्टी की छोटी बर्तनद्ध धान मे भूईया बैरायल और उनकर बच्चा धूल मे लोटायश्ए तात्पर्य यह था की अगर दिन भर मे लगभग एक किलो धान खेतो से बटोरने या मेहनत से मिल जाय उसके बाद उनसे राजा इस पृथ्वी पर कोई नही ! उनकी इस जीवन शैली को सामंती लोंगो ने जबरदस्त भुनायाए हथियार के रूप मे ज्यादा उपयोग कर अपसी दुश्मनी मे और मुफ्त मे मजदूरी कराने मे उपभोग होता रहा और हो रहा है ! पुलिस के अपराधिक डायरी मे यह समुदाय गुलाम भारत से ही जन्मजात अपराधी घोषित किये गये हैए जैसा वर्तमान मे पुलिसिया रवैया से साबित होता है ! बिहार मे मुख्यमंत्री के सबसे चहेता कही जाने वाली श् महादलित मिशनश् कार्यक्रम मे मुसहर को केवल आंशिक रूप से भागीदारी मिल रही हैए जमीनी हकीक़त क्या होती हैए यह बताने की आवश्यता नही घ् मुसहर समुदाय का वास पूर्वाचल ; पूर्वी उत्तरप्रदेश द्धए बिहार ; सघन निवास दक्षणी बिहार द्धए झारखण्ड मे हैए केवल बिहार मे दो दृ चार भूईया समुदाय ; मुसहर द्ध के नीति दृ निर्माता या नीति निर्धारक के रूप मे सुनने को मिंले है !
आईए उत्तरप्रदेश मे हशिए पर जी रही समुदाय की जीजिविषा को 26 जून अंतरराष्ट्रीय यातना विरोधी दिवस के अवसर पर वर्तमान जो लगातार पुलिसिया उत्पीडन और संगठित हिंसा के शिकार है ! उनकी कहानी उनकी जुबानी रू. इस अंक में भोनू मुसहर की कहानी जो पंचायती चुनाव में प्रत्‍यासी के रूप में खड़ा हुएए उनके बाद की पुलिसिया उत्‍पी‍डण्न की कहानी उनकी जुबानी सुने।

1ण् मै भोनू मुसहर उम्र-55 वर्श गाँव-खरगपुर, ब्लाक-पिण्डरा, पोस्ट-।न।ौर, थाना-फूलपुर, वाराणसी (उ0प्र0) का निवासी हैए हिम्मत करके सन 2002 मे पंचायत चुनाव मे खडे हुयेण्ण्ण्ए निर्वाचित नही हुएए लेकिन सामंती . जातिगत और पुलिसिया षडयंत्र के बुरी तरह से शिकार हो गये। लगभग दस वर्षो से अपने निवास स्थान छोडकर भागे दृ भागे फिर रहे हैए कही खेतोए नदी . नालो मे ठंढी रात गुजारने को विवश हैए कोई पनाह देने वाला नहीए भाई पुलिस से किसको खौफ नही ! उपर से अदृश्य और अज्ञात मुखबीर कही भी खडेण् हो जाते है !

मेरे दो लड़की-मंजू (उम्र-26 वर्श), कलावती (उम्र-23 वर्श) और एक लड़का- सुनील (उम्र-20 वर्श) है। सभी बच्चों की षादी हो चुकी है। पत्नी भुटना (उम्र-45 वर्श) मामलो मे पैरवी करती हैए अनपढ महिला होने के बावजूद अनुभवो ने उसे लगातार पुलिसिया उत्पीडन और कोर्ट दृ कचहरी का चक्कर बहुत कुछ सीखा दिया !  फिर भी हज़ारो सालो के सामंती समाज से हारी हुई किसी प्रकार से संघर्ष कर रही है !

मै शादी दृ विवाह मे बाजा बजाने का काम करता थाए साथ मे 12 लोग भी जुडेण् थे। शादी-विवाह के मौसम में एक दिन का लगभग 500/- रु0 मिल जाता था। इसके अलावा मजदूरी भी कर लेते थे। जीवन खुशी व सुकून भरा बीत रहा था। 2002 के मई महीने में धरसौना बरवा-जलालपुर में शादी पड़ी, जिसमें बैंड-पार्टी बाजा बजाने के लिए बारात लेकर पराउगंज गये। वहा से सभी लोग खूशी-पूर्वक शादी निपटा करके घर आये। उसके दूसरे ही दिन लगभग सुबह 10 बजे के करीब पुलिस वाले घर पर मुझे और मेरे भाई अक्कर के बारे मे पूछने लगा मेरी अनुपस्थिति मे पुलिस ने मुटना से कहा-‘‘जहाँ तुम्हारे पति बैंड बाजा बजाने गया था, वहीं पर 5 राजभरों की हत्या हो गयी है, इसलिए उसे पकड़ने आये है, वह जब आयेगा तब थाने पर भेज देना।’’ हुआ यह की पुलिस की लगातार बेरहमी से पिटायी के कारण रामधनी मुसहर, निवासी-धरसौना ने पुलिस को मेरा और अक्कर का नाम दे दिया। पुलिस अज्ञात रूप से शकवश नाम भी दर्ज कर लिए और दुसरी तरफ रामधनी को आजीवन कारावास हो गयाए बेचारे को न्याय दिलाने मे किसी ने सहयोग नही कियाए क्योकि मुसहर है !
उस दिन जब मैं घर लौटा भुटना ने पुलिस आने की बात बतायी, मगर मै थाने डर से नही गया। बाद में पुलिस मेरे ऊपर गैगेस्टर का एक्ट भी लगा दिया। मेरे उपस्थिति नही होने पर भुल्लन दरोगा ने 90 दिन तक इंतजार करके घर की कुड़की करवा दिया। दोपहर 12 बजे के करीब कुड़की हो रहा था, उस समय मैं घर पर नही था, बल्कि घर के पीछे छीपकर देख रहा था, घर पर मेरी औरत, बच्चे और माई थी। वहाँ पर गाँव के प्रधान श्याम नारायण भी थे, वे भी मेरी तरफ से ही बोल रहे थे कि वह निर्दोष है। तीन पुलिस और एक दरोगा अपने जीप से आये थे। दो पुलिस ने घर का ताला तोड़ा और सारा सामान बाहर फेंकने लगा, घर का छप्पर (खपरैल) तोड़-फोड़ डाले, अटैची में रखे बैंक का कागज व मेरी औरत का चालू खाता-किताब भी लेकर चले गये। जब मेरी पत्नी बोली, तो गन्दी गाली देते हुए उसे दो गोजी ; लाठी द्ध बायें हाथ पर मार दिये। जिससे खून निकलने लगा और मेरा भाई डर के मारे चुप हो गया। उस समय मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं अपनी पत्नी को कैसे बचाऊ और अन्दर से बहुत डर भी लग रहा था, मैं वैसे ही छिपा रहा। बहुत घबराहट हो रही थी, इस तरह का पुलिसिया व्यवहार देखकर मैं बहुत डर गया, सोच रहा था कि हम लोगों के साथ कोई नही है।

उसी हालात में दौड़-धूपकर जमानत करवाने और फिर घर पर आकर काम-धाम में लग गया। लगभग एक महीने के बाद एक दिन फिर अचानक जीप से पुलिस करीब 11ः00 बजे रात मेरे घर आयी। इस समय मै और मेरी औरत दुआर ; झोपडी के बाहर द्ध पर नीम के पेड़ के नीचे सो रहे थे। उसमें से कई लोग उतरे और मेरे खटिया पर डन्डे से ठोका। अंधेरा था इसलिए कुछ ठीक से दिखाई नही दे रहा था, तभी उनमें से एक ने मेरे मुॅह पर टार्च जलाया। मेरी आंख चैधियाँ गयी। मैने पूछा-‘‘कौन है? एक पुलिस ने बोला-‘‘भुल्लन दरोगा हूँ, पहचाना की नहीं।’’ तभी एक पुलिस मेरा कालर पकड़ा और गाली देते हुए कहा-‘‘चलो गाड़ी में बैठो, कुछ काम है।’’ मैं रास्ते भर यही सोच रहा था कि ये मुझे क्यों ले जा रहे है, डर भी लग रहा था। करीब एक कि0मी0 जाने पर एक नाला पड़ा। वहीं आम के पेड़ के नीचे गाड़ी रोक दिया गया, मुझसे कहा-‘‘बाहर उतरो।’’ सभी पुलिस भी नीचे उतर आये। मैं तो अंदर से डर गया था कि अब ये क्या करेंगे घ् तभी दरोगा अपने पिस्तौल के तरफ दिखाकर बोला-‘‘मेरी दुर्गा एक मुसहर की बलि चाहती है, अपने भाई का पता बताओ, नहीं तो यही पर गोली से मार देंगे।’’ मैंने कहा-‘‘साहब, मुझे कुछ नही पता।’’ तब उसने कहा-‘‘बताओगे तो तुम्हंे मालामाल कर देंगे।’’ यह सभी बातों को सुनकर दुविधा में पड़ गया, लगा कि अब तोैं बे.मौत मारा जाऊगा। परिवार पर क्या बितेगा यही दिमाग में सबसे पहले ध्यान में आया, फिर मन मजबूत करके बोला:-

‘‘साहब, मुझे मार दीजिए, मगर मै नही बता पाऊँगा मेरे भाई कहाँ है ?’’ उस समय लगभग 12 बज रहे थे। 10 मिनट बाद फिर मुझको थाने ले गये। वहाँ लगभग एक बजे रात को पहुँचे और हवालात में बंद कर दिया। यही पर बगल में पैखाना व पेशाब खाना था, जो बहुत गंदा और महक रहा था। मुझे नींद नही आ रही थी और बहुत डर भी लगा रहा था कि कही पुलिस वाले मेरा इनकान्टर तो नहीं कर देगें।श्

दूसरे दिन सुबह 6 बजे के करीब दरोगा ने चोलापुर के दरोगा (अज्ञात) को बुलाया, मगर पता नही क्या बात कर मुझे चोलापुर के दरोगा के पास चेम्बर में भेज दिया घ् उस दरोगा ने कहा-ये तो बड़ा सीधा-साधा है। इसके बाद दरोगा ने मुझे अपनी गाड़ी में बिठाकर बाबतपुर चैहमुहानी पर ले गया। चाय पिलाया फिर चोलापुर थाना ले गया। रास्ते भर बस यही कहता रहा कि भवरपुर गाँव मुर्दहा के गोविन्द पाल की हत्या हो गयी है, उसका इल्जाम अपने सर पर ले लो, तुम्हारी जान बच जायेगी। उस वक्त डर के मारे हम कह दिये ‘‘जैसे कहयै साहब हम वैसे ही करबै।’’ मरता क्या नही करता।

मगर जब मुझे ैण्च्ण् ; पुलिस अधीक्षक द्ध के सामने ले जाया गया, तब मुझे ऐसा लगा कि ये हमको बचा लेंगे। मैंने कहा-साहब मैंने कुछ नही किया, मुझे ऐसा कहने के लिए ये साहब ने ही कहा। वहाँ पर भवरपुर गाँव, के 36 लोग जो गवाह के रूप में आये थे बोले-‘‘ये बेचारा क्या किसी को मारेगा।’’ मगर ैण्च्ण् बोले-‘‘मै तुम्हारी मदद नही कर पाऊँगा।’’ उस समय मुझे ऐसा लगा कि मै तो और फँस गया। निर्दोष होते हुए भी पुलिस वालों द्वारा गलत व्यवहार, गलत मुकदमें में फँसाने के नाते मेरा जीवन बर्बाद हो गया। शारीरिक, मानसिक प्रताड़ना के कारण मैं काफी टूट गया हूँ। जेल से छुटने के बारे में व पत्नी और बच्चों के बारे में सोचता लगा कि अब उनका क्या होगा। घर परिवार की चिन्ता बनी रहती थी। मन ही मन भयभीत हो रहा थाए वेकसुर होने के बाद भी पुलिस वाले मुझे इतनी यातना दे रहे है और फर्जी मुकदमें में फँसा रहे है ! परिवार के बारे में भी चिन्ता हो रही थी कि बच्चों का क्या होगा।

वहा से थाने लाने के बाद उस दरोगा ने गंदी गाली दिया और दोनो पाव बांधकर तलवे पर, पीठ पर, दोनो हाथ पर डंडे से जोर-जोर से मार। बहुत तेज से हम चिल्लाने लगे, कहे-‘‘साहब छोड़ दो।’’ वह बोला-‘‘बात बदलते हो।’’ पिटाई से मेरा पाव सूज गया था और दर्द भी हो रहा था। मन में ग्लानि हो रही थी, मुसहर बिरादरी में जन्म लेना ही गुनाह है। इस प्रकार प्रताड़ना से मर जाना ही अच्छा हैए बेकसूर होने के बाद फँसाया जा रहा है।
उसी दिन 3 बजे के करीब चलान कर चैकाघाट जेल 26 महीने के लिए चला गया। मुझपर कचहरी से 394/302 व 396/302 मुकदमा दायर किया गया। मैं गोविन्द पाल के हत्या के केस में फँस गया। ऐसा करने से चोलापुर के दरोगा का प्रमोशन हो गया ! जेल में मुझसे झाडू़ लगाना और पैखाना साफ करवाया जाता था। काम 5ः00 बजे सुबह से 11ः00 बजे तक, फिर 2ः00 बजे से 5ः00 बजे तक करता था। वहा अच्छा नही लगताए मच्छर काटने से मुझे बुखार आ जाया करता थाए नीचे ही कम्बल बिछाकर सोता था। वहाँ का डाक्टर सारे बिमारियों का एक ही दवा देते थे। नींद नही आती थी, घर की चिंता हर वक्त सताता था और बार-बार मन यही कहता था कि झूॅठ-मॅूठ के केस में मुझे फँसाया गया है। मुझे कभी-कभी ऐसा लगता था कि जहर खाकर मर जाऊँ।

26 महीने बाद मेरी औरत मेहनत-मजदूरी करके व उधार लेकर मुझे जेल से छुड़वायी (जमानत की)। जमानत के बाद लोगों के खेत में मजदूरी व पतरी बनाते थे, कुड़की के बाद पड़ोसी मेरा कुछ मदद किये, जिससे मेरा परिवार संभला। उस घटना के बाद पुलिस मुझे हमेशा उठाकर ले जाने लगी। जबकि इस मामले मे उच्च न्यायालय से स्टे मिला हुआ है !

ईधर 20 जून, 2010 में, गजोखर गाँव (खालिसपुर) के एक बाबा की हत्या हो गयी थी, जो पीतल का बटुआ व परात चोरी करने के कारण हुआ था। उस दिनों मैं अधिया पर खेत में काम कर रहा था, तभी दो पहिया गाड़ी से तीन पुलिस आये। एक सादे कपड़े में, दो पुलिस वर्दी में थे। मुँह पर 4 थप्पड़ मारा व गाली देते हुए कहा-‘‘चलो दरोगा आर्या पाण्डे बुलाये है।’’ ले जाने के बाद थाने में 2-3 दिन तक बंद रखा। सुबह दरोगा ने पाव बांधकर तलवे पर 25-30 लाठी मारी, मै जोर से चिल्ला रहा था, हथेली घूटना व हाथ पर मारे थे। जिससे सब जगह फूल गया था। मैने साहब से कहा-‘‘इतना क्यों मार रहे हो घ् गोली ही मार दो।’’ फिर कचहरी के लिए चलान दे दिया और मै कचहरी गया तो पता चला कि मुझे उस बाबा के हत्या में 3-4 महीने के लिए चैकाघाट जेल के लिए भेज दिया गया। जाड़े के महीने में मुझे छोड़ा गया। इस तरह से पुलिस से परेशान मैं सोचने लगा कि इनके चक्रव्यूह से कौन बचाए/जीवन जीना दुश्वर लगा, लेकिन परिवार के बारे में सोचकर खड़ा था। पुलिस द्वारा फर्जी गैगेस्टर एक्ट, 60 मग ।बजए 394ध्302 1च्बए 460 1च्ब के मुकदमें में वाइज्जत वरी हो गया हूँ। ईश्वर ने मेरी सत्यता का प्रमाण दे दिया। पुलिस के लाख फँसाने के बाद भी हम निर्दोष साबित हुए।

उस समय मेरे ऊपर बाबा की हत्या का धारा 460 का केस, गुंडा एक्ट, 25 आम्र्स एक्ट चल रहा है। मेरे विरूध्द उ0 प्र0 गुण्डा नियंत्रण अधिनियम के तहत 06 माह के लिए जिलाबदर भी किया गयाए जिसकी दिनांक 10ण्10ण्2011 को अंतिम दिन थाए लेकिन यह कागज मुझे 18ण्10ण्2011 को वकील साहब के द्वारा प्राप्त हुआए जिसकी अवधि बीत चुकी थी ! मानवाधिकार जननिगरानी समिति के सहयोग से 19ण्10ण्2011 को माननीय मण्डलायुक्त के यहा अपील लम्बित है ! इसके बाद भी मै छिप छिपाकर रह रहा थाए तभी अचानक 08ण्11ण्2011 को लगभग शाम 6रू00 बजे फूलपुर थाना के तीन सिपाही बिना जुर्म बताये हमे उठा ले गयेए जिस पर समिति द्वारा राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को आवेदन भेजा गया हैए जिसपर आयोग ने नोटिस जारी कर पुलिस महानिदेशक दृ लखनऊ को 8 सप्ताह मे रिपोर्ट तलब करने का आदेश जारी किये है ! अब मैं बस यही चाहता हूँ कि पुलिस हमें परेशान न करे और झूठा केस में न फँसाये। इतना झेलने के बाद मेरा डर भी खत्म हो गया हैए चाहता हु की जो लोंग और पुलिस वाले इतनी मुकदमो मे मुझे फसाया हैए उन पर कम से कम एक मुकदमा जरूर किया जायए जिससे उन्हे भी पता चले की मुकदमा मे फसने के बाद और जेल जाने पर क्या . क्या परेशानी झेलनी पडती हैए हम तो गरीब आदमी हैए हम किस प्रकार सहे हैए उनको यह एहसाश हो ! मेरा परिवार हमेशा डरते रहते है कि कही पुलिस आ न जायेए फिर भी मुझे बाहर जाने से भी डर लगता है, रात में नींद नही आती, चिंता बहुत होता है कि मेरे परिवार का खर्च कैसे चलेगा घ् इन सब मुकदमों की वजह से मेरे परिवार का आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गयी है। मेरे शरीर में भी दर्द रहता है। मामला मे पैरवी और कोर्ट खर्च के लिए समिति ने 8ए000ध्. रूपया सहयोग स्वरूप मेरी पत्नी को प्रदान किया हैए जिससे राहत मिली है !

जिला बदर के समय काटने के बाद जैसे ही घर पहुँचे की शाम में फुलपुर थाने के नारायण सिपाही अपने मुखबिर विनोद के साथ पहुँचकर मेरी पत्नी और बच्चों को डपटने लगे, उस समय मैं छिप गया कि कही फिर मुझे उठाकर न ले जाए। यह फिर से हमारे ऊपर दबाव बनाने का तरीका था। समिति के प्रयास से अब हमारे भी संगठन है, हम लोग भी अब चुप नही रहेंगे, कुछ भी होने के बाद भी हमने बहुत खोया है, अब कुछ कर अपने समुदाय व बच्चांे के आने वाली समय को खुशहाल करना है।

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